13 Rajab Wiladat of Imam Ali: रजब को अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ आप पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के चचाज़ाद भाई हैं और वह इसी नुबूव्वत की छाया में पले बढ़े और ख़ुद पैग़म्बर की देखरेख में आपका प्रशिक्षण हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पहले आदमी थे जिन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया। हमारे के आखिरी पैगंबर और रसूल अल्लाह हज़रत मोहम्मद के दामाद हज़रत अली का जन्म 13 रजब (इस्लामि कैलेंडर के हिसाब से सातवां महीना) 600 ईस्वी को हुआ था।
आपकी जानकारी के हम आपको बता दें कि हजरत अली की शहादत 21 रमज़ान को हुई पैगंबर मोहम्मद के बाद सुन्नी मुसलमान हज़रत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया समुदाय हजरत अली को पहला इमाम मानते हैं। मुहम्मदे मुस्तफ़ा स.अ. के दहने मुबारक से निकले हुए एक एक हर्फ़ को अली लौहे महफ़ूज़ का मुक़द्दर समझते थे. पैग़म्बरे अकरम स.अ. के किसी हुक्म पर आपने कभी इंकार नहीं किया।
यहां तक कि ये भी देखा गया कि रसूल अल्लाह स.अ. की जूतियों में पैवंद लगाना इमाम अली अपने लिए बाइसे फ़ख़्र समझते थे.इमाम अली कि इन तमाम ख़ूबियों की बिना पर रसूले मक़बूल स.अ. आपकी बहुत इज़्ज़त करते थे।
13 Rajab Wiladat of Imam Ali इतिहास
13 Rajab Wiladat of Imam Ali: हज़रत अली की पैदाईश 13 रजब यानि 15 सितंबर 601 ई में जुम्मे के दिन काबा शरीफ की चार दिवारी के अंदर हुई आपकी वाली अबुतालिब और ह्वालिदा हज़रत फ़ातिमा बिंते असद है अबू तालीम पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चाचा है यानी कि हज़रत अली सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचेरे भाई और दामाद भी है और आप हजरत अली शेरे खुदा के नाम से मशहूर हैं और आप इस्लाम के चौथे खलीफा की हुए हैं हजरत अली रज़ी अल्लाह ताला ने 8 या 10 साल की उम्र में इस्लाम कबूल किया था।
बच्चों में सबसे पहले इस्लाम कबूल करने वाले हजरत अली है और काबुल इस्लाम से पहले हजरत अली ने कभी भी बूत परस्ती नहीं की क्योंकि आप बचपन से ही हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की तबीयत में थे दोस्तों जब हज़रत अली की पैदाइश का वक्त करीब आया तो तारीख गवाह है कि 11 रजब के दिन हजरत अली शेरे खुदा उनकी वालिदा बीबी फातिमा बिनते असद काबा शरीफ के पास गई और कब की दीवार पर अपना हाथ रखकर कहने लगी अल्लाह अपनी वली का जहूर फरमा।
इतना कहना था कि खाना ऐ कब की दीवार हिलने लगी और उसके अंदर एक दरार आ गई और हजरत अली की वालिदा काबा शरीफ के अंदर दाखिल हो गई ये मंजर हजरत अब्बास अपने अब्दुल मुतालिब दूर से अपनी आंखों से देख रहे थे जैसे ही आपने देखा काबा की दीवार फट गई और बीबी फातिमा बिनते असद उसके अंदर चली गई तो आप चिक चिक कर लोगो से कहने लगे कि अबुतालिब की बीबी खाना ऐ काबा के अंदर चली गईं जिसके पेट में बच्चा भी है और मिलकर हम सब खाना ऐ काबा का दरवाजा खुलते हैं और इसको बाहर निकलते हैं उसके बाद यह बात आग की तरह फ़ैल गई।
दूर-दूर से आकर खाना ऐ काबा के पास जमा होने लगे दोस्तों इसके बाद लोग खाना ऐकाबा के दरवाजे को खोलने की कोशिश करने लगे लेकिन किसी से भी अल्लाह के घर का दरवाजा नहीं खोला उसे वक्त पूरे अरब में दो लोग मुत्महीन थे पहले हजरत अबू तालिब और दूसरे अल्लाह के प्यारे रसूल हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम।
उस वक्त 13 रजब थी और जुम्मे का दिन था। सभी लोग खाना ऐ कब की तरफ देख रहे थे कि इतने में खाना ऐ की दीवार हिलने लगी और उन्होंने वही नजर एक बार फिर से देखा हजरत अबू तालिब फरमाने लगे है मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जाओ और देखो अंदर क्या हो रहा है और उसके बाद पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अंदर गए तो आपने देखा की बीबी फातिमा बीनते असद की गोद में एक बड़ा नूरानी बच्चा है और उस बच्चे के नूर से पूरा काबा शरीफ चमक रहा है।
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उसके बाद अबुतालिबउस बच्चे को अपनी गोद में लेकर अपने घर की तरफ जा रहे थे फिर रास्ते में उनको एक मुनाफिक मिला जो कहने लगा ऐ अबुतालिब वो रस्म नही करोगे जो हर बच्चे के साथ की जाती है। दोस्तों हम आपको बता दें मक्का में एक रिजब था की पैदा होने वाले बच्चे पर सांप को छोड़ा जाता था अगर सांप बच्चों को मार देता तो वह कहते थे की यह अपने बाप की औलाद नही है अगर सांप बच्चे को कुछ नही करता तो कहते थे ये अपने बाप की ही औलाद है।
उसके बाद अबू तालिब ने पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ देखा और उसे बच्चों की तरफ देखा और फिर एक जगह पर हजरत अली को रख कर कहने लगे लाओ उस सांप को लाओ जिसपर तुम फक्र करते है उसके बाद उस सांप को लाया गया और हजरत अली पर छोड़ दिया गया। जैसे ही वो सांप हजरत अली के पास आया तो हजरत अली ने अपने नन्हे नन्हे हातो से उस सांप को पकड़ कर दूर फेक दिया यह देखकर वहां पर मौजूद सारे लोग हैरान और हक के पक्के हो गए और सब के सब एक साथ खाने लगे यह तो गजक हो गया।
इस बच्चे ने तो सांप को चीर चीर फाड़ दिया यह सुनकर आपकी वालिदा बीबी फातिमा बीनते असद कहने लगीं कि यह मेरा बच्चा हैदर है शेर है जिसने सांप को चीर कर दो टुकडो में तकसीम कर दिया। प्यारे दोस्तों हजरत अली वो हैं जिनकी पैदाईश खानाऐ काबा में हुयी जो आज तक किसी की नही हुई हजरत अली वो हैं जो अल्लह के प्यारे नबी हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की प्यारी बेटी हजरत फातिमा के साहोर और आपके दामाद हैं। हजरत अली को है जो हमारे प्यार नबी हुजूर सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के प्यार नवासे हजरत हसन और हुसैन के वालिद हैं।
हजरत अली ने चार साल की हुकुमत
हजरत अली ने खलीफा बनने के बाद करीब चार साल तक हुकुमत की.हजरत अली को सबसे शुजा (बहादुर) माना जाता है। हजरत अली अब्दुल्ला तालाब बहुत ही ताकतवर माना जाता है कहा जाता है कि आरव की किसी माँ ने एसा बीटा ही पैदा नहीं किया जो अली की गर्दन में रस्सी डाल सके। हजरत उमर खलीफा ऐ बिनतरकीब दुआम है लेकिन उम्र की ताकत भी अली की ताकत के बराबर नही। आपको बता दे की हजरत उमर की फजीलत अली से बढ़कर है लेकिन ताकत अली से बढ़कर नहीं।
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हजरत अली की शहादत
यह वाक्य है हजरत अली की शहादत का दिन था 19 रमजान का जब अब्दुल रहमान बिन मुलजिम नबी शख्स जो कि ऊपर से मुसलमान था मगर अंदर से जल रहा था बुक्स से अली में जिस बुक्स अली ने उसे जहानामी बना दिया और वह मस्जिद अक्सा में घुस जाता है और जब हज़रत अली सजदे में जाते हैं तो यह मनहूस शख्स हजरत अली पर जहर आलूद खंजर से वार करता है और आज उसे अली को पीठ पीछे हमला करके जख्मी कर देता है जी अली के सामने दुनिया का बड़ा से बड़ा पहलवान ना ठहर सका।
जिस अली के सामने दुनिया की सारी ताकत ढेर हो गई अली को आज यह मनहूस शख्स पीठ पीछे पार करके जख्मी कर देता है। क्योंकि यह अल्लाह का फैसला है कि हर जान को मौत का मजा चकना है और जख्मी होने के बाद हजरत अली की जुबान से सबसे पहला कलमा यह निकलता है कि रब की कसम आज अली कामयाब हो गया। आप हजरत अली का जख्म इतना कह रहा था कि आप दो दिन इस तकलीफ में रहते हैं और 21 रमजान को दुनिया से रुखसत हो जाते हैं।
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